भाषा और बोली के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों ने अपनी-अपनी राय दी है। कुछ लोगों ने बोलियों को पूर्णतः भाषा (हिन्दी) में अन्तर्गत कर दिया है, तो कुछ ने बोलियों की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार किया है। हिन्दी भाषा के विकास तथा प्रसार के संदर्भ में देखने से यह प्रतीत होता है कि हिन्दी भाषा तथा उसके प्रभावानीत प्रदेशों में प्रयुक्त जन-बोलियों का सहअस्तित्व रहा है तथा हिन्दी इन बोलियों के द्वारा सदा सम्पुष्ट होती रही है।