नाटक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨, सशकà¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ विधाओं में से à¤à¤• सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ विधा है। नाटक और मानव जीवन का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ शाशà¥à¤µà¤¤ रहा है। हमारे समà¥à¤®à¥à¤– वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ संसार à¤à¤• रंगमंच है, जिस रंगमंच के हम किसी न किसी रूप में पातà¥à¤° हैं। यहाठपर कोई, विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ की à¤à¥‚मिक निà¤à¤¾ रहा है, कोई अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• की तो कोई माता-पिता और à¤à¤¾à¤ˆ-बहिन की। हम सबको परमातà¥à¤®à¤¾ ने à¤à¤• à¤à¥‚मिका, à¤à¤• जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ दे रखी है, जिसको कोई किसी पातà¥à¤° रूप में तो कोई किसी पातà¥à¤° रूप में निà¤à¤¾ रहा है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मानव जीवन के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ और यथारà¥à¤¥ जीवन के विविध आयामों से विषय चà¥à¤¨à¤•à¤°, वह समाज हित के लिठही अपने रूप का निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ करता है। सामानà¥à¤¯ रूप से शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ तथा पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ की आकृति (शारीरिक बनावट) वेश-à¤à¥‚षा, à¤à¤¾à¤µ-à¤à¤‚गिमा, कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤•à¤°à¤£ और à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥‚प अà¤à¤¿à¤¨à¤¯ तथा पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ के माधà¥à¤¯à¤® से यथारà¥à¤¥ जीवन को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करने की कला ही नाटक है। नाटक के लिठसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ में, नाटà¥à¤¯, नाटक, रà¥à¤ªà¤•, रंगकरà¥à¤®, रंगमंच आदि विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया गया है।