नाटक संस्कृत की प्राचीन, सशक्त एवं प्रभावशाली विधाओं में से एक सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। नाटक और मानव जीवन का सम्बन्ध शाश्वत रहा है। हमारे सम्मुख वर्तमान संसार एक रंगमंच है, जिस रंगमंच के हम किसी न किसी रूप में पात्र हैं। यहाँ पर कोई, विद्यार्थी की भूमिक निभा रहा है, कोई अध्यापक की तो कोई माता-पिता और भाई-बहिन की। हम सबको परमात्मा ने एक भूमिका, एक जिम्मेदारी दे रखी है, जिसको कोई किसी पात्र रूप में तो कोई किसी पात्र रूप में निभा रहा है अर्थात् मानव जीवन के व्यापक संदर्भों और यथार्थ जीवन के विविध आयामों से विषय चुनकर, वह समाज हित के लिए ही अपने रूप का निर्धारण करता है। सामान्य रूप से शब्दों तथा पात्रों की आकृति (शारीरिक बनावट) वेश-भूषा, भाव-भंगिमा, क्रियाओं के अनुकरण और भावों के अनुरूप अभिनय तथा प्रदर्शन के माध्यम से यथार्थ जीवन को प्रकट करने की कला ही नाटक है। नाटक के लिए संस्कृत साहित्य में, नाट्य, नाटक, रुपक, रंगकर्म, रंगमंच आदि विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया है।