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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2017, Vol. 3, Issue 3, Part G

यजुर्वेद में गृहस्थाश्रम - वर्तमान परिपेक्ष्य में

Dr. Atiya Danish

किसी भी जाति का धर्मशास्त्र उसका आचारशास्त्र होता है उस आचारशास्त्र में प्रतिपादित आचरण का अनुसरण करके वह जाति उन्नति करती है भारत का धर्मशास्त्र भी उस जाति का आचारशास्त्र है। धर्मशास्त्र में वेद स्मृतियां आते हैं संस्कृत वाङ्मय का महत्वपूर्ण भाग वेद भारत के धर्मशास्त्र के रूप में माने जाते हैं। वेदों में यजुर्वेद द्वितीय स्थान पर है। इसमें वर्णित आश्रम व्यवस्था और उसमें भी गृस्थाश्रम वास्तव में वर्तमान काल में प्रांसगिक है, इसको नकारा नहीं जा सकता। वस्तुतः गृहस्थाश्रम परमेश्वर की सृष्टि का जागतिक रूप है। इसी की छटा छाया में मानव एक से युगल बनता है और कालान्तर में एक से अनेक बनता है। सन्ततिक्रम से वंश बेलि को आगे बढ़ाता है। गृहस्थाश्रम में ही धनो प्लार्जन होता है। धनप्राप्ति के लिये नित्य नूतन साधनों का अनुसन्धान होता है तो दूसरी ओर काम भी चरितार्थ होता है। मोक्ष पुरुषार्थ चतुष्ट्य का अन्तिम तथा चरम लक्ष्य स्वीकार किया गया है किन्तु उस तक पहुँचने का आधार भी गृहस्थाश्रम ही है। यजुर्वेद में एक आदर्श गृहस्ती को किस प्रकार के कर्म करने चाहिए, कैसा जीवन यापन करना चाहिए इस पर प्रकाश डाला गया है। यदि यजुर्वेद में प्रतिपादित गृहस्थ के दायित्वों, करणीय कर्म, अकरणीय कर्म, आदि का अनुसरण किया जाए तो आज के युग में समाज से अव्यवस्था, अशान्ति, भ्रष्टाचार, आदि का स्वतः समापन हो जाएगा।
Pages : 389-392 | 1913 Views | 739 Downloads


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How to cite this article:
Dr. Atiya Danish. यजुर्वेद में गृहस्थाश्रम - वर्तमान परिपेक्ष्य में. Int J Sanskrit Res 2017;3(3):389-392.

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