महाकवि à¤à¤µà¤à¥‚ति संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ के शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कवि माने जाते हैैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उतà¥à¤¤à¤°à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¤®à¥, महावीर चरितमॠà¤à¤µà¤‚ मालतीमाधव नामक तीन नाटक लिखे हैं। निःसंदेह तीन नाटक सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ है। उतà¥à¤¤à¤°à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¤®à¥ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ नाटक है। यह महाकवि à¤à¤µà¤à¥‚ति का अकेला नाटक है जो महाकवि कालिदास के समकà¥à¤· लाकर खड़ा कर दिया है। महाकवि à¤à¤µà¤à¥‚ति ने अपने नाटकों में पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के चयन पर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया है। नाटक के पातà¥à¤° जितना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सजीव à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤£à¥€ होगे नाटक उतना ही सफल सिदà¥à¤§ होगा। नाटक के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के चारितà¥à¤°à¤¿à¤• विशेषता का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– महतà¥à¤µ होता है। नाटककार विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से अपने यà¥à¤—ीन जीवन का जीता - जागता चितà¥à¤° अंकित करता है।
अतः नाटकों में चरितà¥à¤°-चितà¥à¤°à¤£ का महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। à¤à¤µà¤à¥‚ति के नाटक उतà¥à¤¤à¤°à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¤®à¥ में पà¥à¤°à¥‚ष à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हैं किनà¥à¤¤à¥ मैंने अपने शोध का विषय उतà¥à¤¤à¤°à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¤®à¥ के पà¥à¤°à¥‚ष पातà¥à¤° लिया है, जिसमें पà¥à¤°à¥‚ष पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ को दो à¤à¤¾à¤—ों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ कर उनके विषय में वरà¥à¤£à¤¨ किया जायेगा।