सभी शास्त्रकारो का यही निष्कर्ष है और सभी शास्त्रीय विवेचक पुनर्जन्म के सम्बन्ध में एकमत हैं। जन्म और मरण में अन्योन्य सम्बन्ध है अगर मृत्यु हैैै तब जन्म भी स्वयं सिद्ध है। मृत्यु सिद्ध है तो जन्म क्योंकर असिद्ध हो सकता है। नित्य चेतन जीवात्मा का विभिनन योनियों को ग्रहण करने की प्रक्रिया से प्रायः कर्मों पर ध्यान एवं चिंतन केन्द्रित हो जाता है। वैदिक दर्शन का यही मत रहा है कि जैसे कर्म किये जाते हैं वैसे ही संस्कार या भाव बनते हैं, उन्हीं भावों के अनुसार ही आगामी देह या शरीर प्राप्त होता है। जिसे पुनर्जन्म कहा जाता है।