International Journal of Sanskrit Research
2017, Vol. 3, Issue 1, Part B
ऋगà¥à¤µà¥ˆà¤¦à¤¿à¤• ऋत à¤à¤µà¤‚ अवेसà¥à¤¤à¥€à¤¯ अशः à¤à¤• तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨
मीनाकà¥à¤·à¥€
आधà¥à¤¨à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सà¤à¥€ गवेषणाओं का लकà¥à¤·à¥à¤¯ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ के मूल तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ है। वेद के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का मूल सूतà¥à¤° ही ऋत और सतà¥à¤¯ है जो सब ओर समिदà¥à¤§ तप या उषà¥à¤£à¤¤à¤¾ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते हैं उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ से वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ संसार से पहले अवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤°à¥‚प रातà¥à¤°à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती है और गतिशील सूकà¥à¤·à¥à¤® कणों के रूप में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• जल बनता है पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ शोधपतà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• वैदिक यà¥à¤— में सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के मूलततà¥à¤¤à¥à¤µ के रूप में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ ऋत विषयक धारणा के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में विचार पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करता है। पूववैदिक समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ यह ऋत विचार ही कालानà¥à¤¤à¤° में सतà¥à¤¯ का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ माना जाने लगा। इसी अनà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤² में जरथà¥à¤¶à¥à¤¤à¥à¤° धरà¥à¤® जो कि पूरà¥à¤£ रूप से नैतिकनियमों, पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾, शà¥à¤šà¤¿à¤¤à¤¾, सदाचार पर आशà¥à¤°à¤¿à¤¤ है, में ऋत विषयक धारणा अश के रूप में विकसित हà¥à¤ˆà¥¤
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मीनाकà¥à¤·à¥€. ऋगà¥à¤µà¥ˆà¤¦à¤¿à¤• ऋत à¤à¤µà¤‚ अवेसà¥à¤¤à¥€à¤¯ अशः à¤à¤• तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨. Int J Sanskrit Res 2017;3(1):85-87.