ज्योतिष शास्त्र का विकास मानव जीवन के विकास के साथ ही हुआ | मनुष्य का स्वभाव जिज्ञासाओं से भरा हुआ है वह सृष्टि की प्रत्येक वस्तु के साथ अपने जीवन का तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है | वह हमेशा से ही जानना चाहता है कि क्यों, कैसे, क्या हो रहा है? आगे क्या होगा? ये तारे ग्रह – नक्षत्र क्या है? सूर्य प्रतिदिन पूर्व से क्यों निकलता है, ऋतुएँ किस प्रकार बदलती हैं, पुच्छल तारे क्या हैं इत्यादि | इन्हीं सब को जानने के लिए वह निरंतर प्रयासरत रहा | मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि मानव की उपर्युक्त जिज्ञासा ने ही उसे ज्योतिष शास्त्र के प्रति गंभीर किया | आदिम मानव ने आकाश की प्रयोगशाला के सामने आने वाले ग्रह, नक्षत्र और तारों का पर्यवेक्षण करना प्रारम्भ किया और अनेक रहस्यों का पता लगाया जिसने हमें ज्योतिष के साथ जीवन का सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रेरित किया | वैदिक काल से ही ज्योतिष विद्यमान हैं | जो मानव जीवन के लिए सब प्रकार से कल्याण मार्ग हेतु पथ प्रदर्शक हैं |