International Journal of Sanskrit Research
2017, Vol. 3, Issue 1, Part B
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· का उदà¥à¤à¤µ व इतिहास
दीपà¥à¤¤à¥€ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी
जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· शासà¥à¤¤à¥à¤° का विकास मानव जीवन के विकास के साथ ही हà¥à¤† | मनà¥à¤·à¥à¤¯ का सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾à¤“ं से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है वह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वसà¥à¤¤à¥ के साथ अपने जीवन का तादातà¥à¤®à¥à¤¯ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करना चाहता है | वह हमेशा से ही जानना चाहता है कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚, कैसे, कà¥à¤¯à¤¾ हो रहा है? आगे कà¥à¤¯à¤¾ होगा? ये तारे गà¥à¤°à¤¹ – नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° कà¥à¤¯à¤¾ है? सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पूरà¥à¤µ से कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ निकलता है, ऋतà¥à¤à¤ किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बदलती हैं, पà¥à¤šà¥à¤›à¤² तारे कà¥à¤¯à¤¾ हैं इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ | इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ सब को जानने के लिठवह निरंतर पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¤°à¤¤ रहा | मनोवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ से विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ करने से जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि मानव की उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ ने ही उसे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· शासà¥à¤¤à¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ गंà¤à¥€à¤° किया | आदिम मानव ने आकाश की पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—शाला के सामने आने वाले गà¥à¤°à¤¹, नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° और तारों का परà¥à¤¯à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ करना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ किया और अनेक रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पता लगाया जिसने हमें जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· के साथ जीवन का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया | वैदिक काल से ही जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं | जो मानव जीवन के लिठसब पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ मारà¥à¤— हेतॠपथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤• हैं |
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दीपà¥à¤¤à¥€ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· का उदà¥à¤à¤µ व इतिहास. Int J Sanskrit Res 2017;3(1):70-74.