कविता के सामाजिक संदर्भ और विजेन्द्रः बनते मिटते पाँव रेत में कविता संग्रह के संदर्भ में
डाॅ. हरिहरानंद शर्मा
साहित्य समाज की मनोभावना का दर्पण है। इसमें व्यक्ति और समाज के समष्टिगत विषयों का संकलन होता है। कवि या साहित्यकार अपने भोगे हुए सार्वजनिक संदर्भो को अनुभूत कर संचयी संभावनाओं को अपनी सर्जना में प्रकट करता है। यह प्रकटीकरण समाज और व्यक्तियों की वस्तुगत स्थितियों की विवेचना करता है। समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर विजेन्द्र ने सामाजिक मूल्यों और अनुभवों को अपनी कविता में अंकित किया है। जिनका मूल्यांकन अभी तक व्यापक तौर पर नहीं हो सका है। प्रस्तुत शोध आलेख उन्हीें सामाजिक सन्दर्भो में विजेन्द्र की कविता का मूल्यांकन है।