International Journal of Sanskrit Research
2016, Vol. 2, Issue 6, Part C
सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ ततà¥à¤¤à¥à¤µ- à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨
उमेश पौडेल
सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° संवेदनातà¥à¤®à¤•-à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• गà¥à¤£-धरà¥à¤® और मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ है। कला, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤…ंकन ही सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° है। सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° वह शासà¥à¤¤à¥à¤° है जिसमें कलातà¥à¤®à¤• कृतियों, रचनाओं आदि से अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ होने वाला अथवा उनमें निहित रहने वाले सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का तातà¥à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤•, दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤• और मारà¥à¤®à¤¿à¤• विवेचन होता है। किसी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° वसà¥à¤¤à¥ को देखकर या सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° वसà¥à¤¤à¥ के बारे में सà¥à¤¨à¤•à¤° हमारे मन में जो आननà¥à¤¦à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ अनà¥à¤à¥‚ति होती है वही सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ है। उसी सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ को किसी के जीवन की अनà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¯ अनà¥à¤à¥‚तियों के साथ उसका समनà¥à¤µà¤¯rnसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करना इस शासà¥à¤¤à¥à¤° का मà¥à¤–à¥à¤¯ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ होता है।
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उमेश पौडेल. सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ ततà¥à¤¤à¥à¤µ- à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨. Int J Sanskrit Res 2016;2(6):115-118.