International Journal of Sanskrit Research
2016, Vol. 2, Issue 6, Part C
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में पाकशासà¥à¤¤à¥à¤° का महतà¥à¤¤à¥à¤µ
अनà¥à¤œà¥ बाला
à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाने या पकाने की कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को पाक कहा जाता है à¤à¤µà¤‚ इसको शासित करने वाली विधा पाकशासà¥à¤¤à¥à¤° कहलाती है। पाकशासà¥à¤¤à¥à¤° का पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ वैदिककाल से हो चà¥à¤•à¤¾ था। आरà¥à¤¯ पाक कला से à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤‚ति परिचित थे, साथ ही आहार शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पर विशेष बल देते थे। पाकशासà¥à¤¤à¥à¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने के कारण ही उचित अनà¥à¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने के विषय में सजग थे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अनà¥à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होता है- ‘‘अनà¥à¤¨à¤¾à¤¦à¥ à¤à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥‚तानि।’’ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• दिन हमें पवितà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में तथा उचित à¤à¥‹à¤œà¤¨ लेने के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ मिलते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि संतà¥à¤²à¤¿à¤¤ तथा सà¥à¤µà¤šà¥à¤› à¤à¥‹à¤œà¤¨ ही मन को निरà¥à¤®à¤² बनाता है तथा सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ संवरà¥à¤§à¤¨ में वृदà¥à¤§à¤¿ करता है।
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अनà¥à¤œà¥ बाला. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में पाकशासà¥à¤¤à¥à¤° का महतà¥à¤¤à¥à¤µ. Int J Sanskrit Res 2016;2(6):111-114.