तान्त्रिक वाङ्मय अत्यन्त विशाल है। व्याकरण आदि शास्त्रों के अध्ययन के बाद जिन मनीषियों की ईश्वरकृपावश तन्त्रशास्त्र में रुचि हुई उन लोगों का एक स्वर से यही निर्णय है कि तन्त्रशास्त्र की शरण में गये बिना जीव को वास्तविक मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती। तन्त्रशास्त्र में शिव और शक्ति का स्थान सर्वोपरि एवं सर्वमान्य है। शिव और शक्ति एक ही हैं क्योंकि एक के बिना दूसरा नहीं रह सकता।