International Journal of Sanskrit Research
2016, Vol. 2, Issue 5, Part A
कालिदास के नाटकों में नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾
जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ बाला
कलाà¤à¤ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• काल à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤—ों में मानव जीवन के लिठउपयोगी à¤à¤µà¤‚ मानव की सदैव सहयोगी रही हैं । संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ कलाओं में से यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤•à¤µà¤¾à¤¦ के यà¥à¤— में कई कलाओं का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— गौण अथवा लà¥à¤ªà¥à¤¤à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ हो चà¥à¤•à¤¾ है तथापि ‘कला जीवन के लिठहै à¤à¤µà¤‚ जीवन कला के लिठहै’ इस उकà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ काल में à¤à¥€ कलाà¤à¤ मानव जीवन की अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सहचरी बनी हà¥à¤ˆ है। चैंसठकलाओं में नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अनà¥à¤¯à¤¤à¤® है। नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾ में आंगिक, वाचिक, साŸिवक à¤à¤µà¤‚ आहारà¥à¤¯ इन चार अà¤à¤¿à¤¨à¤¯à¤¾à¤™à¥à¤—ों की विशेष à¤à¥‚मिका होती है। नृतà¥à¤¯ के à¤à¤¾à¤µ की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ होने के कारण इस कला को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कलाओं में गिना जाता है। ‘अनà¥à¤¯à¤¦à¥à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¶à¥à¤°à¤¯à¤‚ नृतà¥à¤¯à¤®à¥â€™à¥¤rnकालिदास के नाटकों में समसà¥à¤¤ कलाओं का निदरà¥à¤¶à¤¨ होता है। ततà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¿ विशेषतः नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾à¥¤ ‘अà¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¤¾à¤•à¥à¤¨à¥à¤¤à¤²à¤®à¥â€™ तो इस कला के लिठजगतà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ शोध पतà¥à¤° में कालिदास के तीनों नाटकों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ ‘नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾â€™ पर सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° विचार किया गया है।
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जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ बाला. कालिदास के नाटकों में नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾. Int J Sanskrit Res 2016;2(5):07-09.