सौन्दर्य चर्मराग नहीं है, ना ही यह अंगनाओ के अंग भंगिमाओ का लावण्य है। सौन्दर्य की भारतीय दृष्टि को दिखाते हुए सौन्दर्य की विभावना की गई है। सौन्दर्यलीलामृतम् काव्य में यह काव्य राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर से प्रकाशित ‘काव्यमंजूषा‘ में संकलित यह खण्डकाव्य पं. रामदवे की प्रथम कृति है। कवि ने इस खण्डकाव्य की रचना सन् 1949 में मुम्बई प्रवास के समय की थी। इस काव्य में 143 श्लोक है। कवि ने इस काव्य में सौन्दर्य का सत्य शिव रुप प्रस्तुत किया है। काव्य का कथानक मुम्बई की चैपाटी से लिया है।