International Journal of Sanskrit Research
2016, Vol. 2, Issue 3, Part B
लघुकाव्य ‘माधवीयम्’ का महत्त्व
प्रमोद मिश्रा, डाॅ. प्रज्ञा मिश्रा
महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के जीवन-चरितà¥à¤° का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ होता है। आदिकाल से लेकर आज की पà¥à¤°à¤—त मानव सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ तक सामाजिक और सांसà¥à¤•ृतिक उतà¥à¤•रà¥à¤· के लिठजिन असंखà¥à¤¯ महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का योगदान रहा है, माधवराव गोलवलकर उनमें से अनà¥à¤¯à¤¤à¤® थे। उनका जीवन पूरà¥à¤£à¤°à¥‚प से राषà¥à¤Ÿà¥à¤° को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ था। ‘इदं राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¯ इदं न मम’ का वैदिक मनà¥à¤¤à¥à¤° उनके जीवन में साकार और सारà¥à¤¥à¤• था। उनके जीवन-चरितà¥à¤° को पà¥à¤°à¤•ट करने वाला यह कावà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ और इसके रचयिता दोनों ही पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा के पातà¥à¤° हैं। महाकवि पà¥à¤°à¥‹. मिथिलापà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤ ी ने अपने लघà¥à¤•ावà¥à¤¯ ‘माधवीयमà¥â€™ की à¤à¥‚मिका में ही लिखा है- ‘‘परम पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ (माधवराव गोलवलकर जी) का जीवन किसी महाकावà¥à¤¯ से कम नहीं है।’’ और ‘‘वैसे तो गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ के जीवन का इतिवृतà¥à¤¤ शबà¥à¤¦à¤¾à¤¤à¥€à¤¤ है किनà¥à¤¤à¥ फिर à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤ƒ सà¥à¤–ाय सूरà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤•ाश में दीपक जलाना à¤à¥€ कà¥à¤·à¤®à¥à¤¯ होगा ही à¤à¤¸à¤¾ लगता है।’’
How to cite this article:
प्रमोद मिश्रा, डाॅ. प्रज्ञा मिश्रा. लघुकाव्य ‘माधवीयम्’ का महत्त्व. Int J Sanskrit Res 2016;2(3):80-82.