मनुष्य के लिए घूमना अत्यन्त आवश्यक है। घूमने सें व्यक्ति को समाज की संस्कृति एवं सभ्यता के ज्ञान के साथ उसका आत्म-परिष्कार भी होता है। पर्यटक और घुमक्कड तथा यात्री तीन शब्द प्रचलित हैं। वस्तुतः तीनों के महत्व का परीक्षण अलग-अलग किया जा सकता है। जब कोई यात्री/ घुमक्कड/पर्यटक जब आखों देखा हाल लिखकर समाज के सम्मुख रखता है, तब उसके द्वारा दी गयी सूचना की महत्ता का मूल्यांकन नहीं हो पाता, उसकी उपयोगिता की सीमा भी निर्धारित नहीं हो पाती। घुमक्कड़ से बढ़कर समाज का हितैषी होना दुष्कर है। इन तथ्यों पर बहुधा साहित्य भी रचे हैं। संस्कृत, हिन्दी, अॅग्रेजी आदि विधाओं में घुमक्कडी का महत्व प्राप्त होता है।