प्रस्तुत शोध पत्र में विभिन्नपुराणानुसारी विघ्नेश्वर की विघ्नोत्पत्ति विवेच्य विषय है। इस प्रकार के वर्णनों की प्राप्ति शिव, नारद, अग्नि, भविष्य, वाराह तथा गरुडपुराणों में हुई है। शिव के अनुसार मनुष्य को नित्य श्रद्धा-भावसहित निजसामथ्र्यानुसार संपूर्ण-कार्य-सिद्धि-हेतु सिन्दूर, चन्दन, तण्डुल, केतक और अनेकविध उपचारों से गणेश्वर की पूजा करनी चाहिए। शिव का कथन था कि जो भक्तिपूर्वक नानोपचारों से गणेशार्चना करते हैं, उन के सभी कार्याें की सिद्धि होती है तथा सर्वदा ही विघ्ननाश होता है। नारदपुराणानुसार गणेश की अर्चना कर नर देवादि के लिए भी दुष्प्राप्य फल की प्राप्ति करता है। अग्निपुराण में भुक्तिमुक्तिप्रदायक चतुर्थीव्रतों का वर्णन उपलब्ध होता है। भविष्य पुराण में वर्णन प्राप्त होता है कि नर एवं नारी भक्ति तथा श्रद्धासहित चतुर्थी की रात्रि से अनन्यमनसा उपवास कर के भक्तिसहित रक्तपुष्प तथा विलेपनों से कुज की पूजा करता है और श्रद्धान्वित होकर भक्तिपूर्वक सर्वप्रथम गणेश की अर्चना करता है, उस से सन्तुष्ट वह (गणेश) सौभाग्य और रूपसम्पदा प्रदान करते हैं। वाराह पुराणानुसार चतुर्थी तिथि अन्य तिथियों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्त्वमयी वर्णित है। गरुड़ में कहा गया कि माघ के शुक्लपक्षीय चतुर्थी के दिन निराहार रह कर कृत व्रत विशेष महत्त्वपूर्ण होता है। इसमें विप्र को तिल देकर स्वयमपि तिलोदक का भक्षण करना चाहिए।