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International Journal of Sanskrit Research
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2019, Vol. 5, Issue 2, Part B

पर्यावरण संरक्षण में आयुर्वेद की भूमिका

सुमन मिश्रा

सर्वप्रथम आयुर्वेद क्या है? यह जानना अति आवश्यक है। जो शास्त्र आयु का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते है यह अथर्ववेद का उपवेद है। इसी कारण अथर्ववेद के कई उद्वरण इसमें डाले गये है। आयुर्वेद के दो प्रयोजन हैं सर्वप्रथम स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना। दूसरा आतुर की रक्षा करना ।
आयुर्वेद के प्रथम प्रयोजन में आचार्यों ने सदवृत, स्वस्थवृत सम्यक ऋतुचर्या का वर्णन किया है। व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए पर्यावरण का शुद्व रहने पर ही इन उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है। अथर्ववेद जिसका कि आयुर्वेद उपवेद है उस अथर्ववेद में पर्यावरण संघटक तत्वों में तीन प्रमुख हैं- जल वायु व वनस्पति। ये ही पर्यावरण का निर्माण करते हैं।
त्रीणि छन्दांसि कवयो वि येतिरेू, पुरूरूपं दर्शतं विश्वचक्षणाम। 1
आपो वाता ओषधयः तान्येकस्मिन भुवन अर्पितानि।।(अथर्व 18/1/17)
पर्यावरण को हम दो भागों में बांट सकते हैं।
1. धारक पर्यावरण्
2. पोषक पर्यावरण
धारक पर्यावरण के अन्तर्गत सोम (जल) सूर्य और वायु आते है जो हमारे शरीर के वात पित्त और कफ को संचालित करते हुये देह को धारण करते है।
विसर्गादान विक्षैपेः सोमसूर्यानिलस्तथा। 2
धारयन्ति जगददेह कफपितानिलस्तथा।।(सु0सू021/8)
पोषक पर्यावरण के अन्तर्गत आता है पादप वनस्पति जगत क्योंकि पादप जगज ही सोम(जल) सूर्य व वायु से स्वतंत्र ऊर्जा प्राप्त कर उसे ग्रहण योग्य स्थिर ऊर्जा में परिवर्तित करते है। जिसे ग्रहण करने से हमारे शरीर का पूर्ण पोषक संभव होता है। इन धारक और पोषक पर्यावरण के संतुलन से हम स्वस्थ रहते हैं। परन्तु आज दौड़ धूप के कारण हम वायु जल देश और काल जैसे पर्यावरण के घटकों को प्रदूषित करते जा रहें है। आचाय्र चरक के अनुसार इन चार के विकृत होने पर एक ही समय पर एक ही समान लक्षण वाले रोग उत्पन्न होकर समाज को नष्ट कर देते हैं।
Pages : 78-80 | 1319 Views | 166 Downloads
How to cite this article:
सुमन मिश्रा. पर्यावरण संरक्षण में आयुर्वेद की भूमिका. Int J Sanskrit Res 2019;5(2):78-80.

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