Contact: +91-9711224068
International Journal of Sanskrit Research
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

Impact Factor (RJIF): 8.4

International Journal of Sanskrit Research

2017, Vol. 3, Issue 5, Part B

ज्योतिर्विज्ञान की दृष्टि से हृदय रोग विमर्श

अभिनव तिवारी

हृदय मानव शरीर का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। यह वक्ष के बायीं ओर दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित होता है। इसका कार्य मनुष्य के शरीर में रक्त संचार करना है। हृदय के कार्यों में व्यवधान आने से हृदय के घातक रोग होते हैं। ज्योतिष के अनुसार जन्मांग के चतुर्थ भाव से हृदय का विचार किया जाता है, मतान्तर से पंचम भाव को भी देखा जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रहों में सूर्य को हृदय का कारक माना गया है। जिन लोगों को भी हृदय सम्बन्धी रोग होते हैं, उनमें से अधिकांश व्यक्तियों का सूर्य पाप प्रभाव में अवश्य होता है।
Pages : 87-89 | 1021 Views | 97 Downloads
How to cite this article:
अभिनव तिवारी. ज्योतिर्विज्ञान की दृष्टि से हृदय रोग विमर्श. Int J Sanskrit Res 2017;3(5):87-89.

Call for book chapter
International Journal of Sanskrit Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals
Please use another browser.